Shree Rudreshwar Mahadev Temple Devrana
सामान्य जानकारी :-
- मंदिर :- देवराना जंगल के बीच
- स्थान :- तियाँ
- कुल मूर्तियों की संख्या :- 5
- अक्षांश :- 30°45'2"N 78°7'55"E
- कुल गांव :- 65 से अधिक
- कुल थान/मुख्य मंदिर :- चार (4)
- पुजारियों के गाँव :- तीन (तियाँ, कंडाव, देवलसारी)
- स्थान परिवर्तन प्रत्येक चार वर्ष के बाद ।
- मेले का आयोजन प्रत्येक आषाढ़ के माह में ।
- मेले का निर्धारण बसन्त पंचमी के दिन ।
- मंदिर शैली :- छत्रप शैली ।
- कुल मेलों के संख्या :- 4 (डांडा की जातिरा, थौलदार, कंडारा/दूणी, कोटा) ।
- गर्भ गृह प्रवेश :- श्रवण मास
- देहरादून से तियाँ तक की दूरी मात्र :- 135 KM
- देहरादून से नौगांव की दूरी :- 105 KM
- उत्तरकाशी से तियाँ की दूरी :- 150 KM
- उत्तरकाशी से नौगांव की दूरी :- 160 KM
"सत्य के प्रतीक, आदिपुरुष, कर्मठ, योगीपुरुष, चरित्रवान, महानपुरुष, धैर्यवान व्यक्तित्व, जनता के चहते, रुद्र के आशीष से फलीभूत, परम् संत, परम् महात्मा, भगवान श्री रुद्रेश्वर महादेव के पुजारी" :- स्व0 श्री कुलानंद थपलियाल जी (तियाँ)
इतिहास :-
- श्री रुद्रेश्वर महादेव का इतिहास बहुत ही पुराना इतिहास है, जो आज से कितना पुराना है, इसका कोई अंदाजा नही लगा सकता है । श्री रुद्रेश्वर महादेव जी/लुदेश्वर महादेव के बारे में कुछ पौराणिक मान्यता है, कि ये पहले कश्मीर के राजा हुआ करते थे, और ये नदियों के द्वारा बहते हुए दिल्ली आए, वहां से आगे बढ़ते प्रभु ढाकर (पहले के लोग सामान लाने के लिए बाजार जाते थे) लाने वालों के गिलटा में चमत्कार करते हुए आये ।
- जब प्रभु ढक़रीयिओं के साथ आ रहे तो कुछ लोगों को कुछ अजीब सा लग रहा था, वो जो सामान ला रहे थे, उसका वजन कभी बहुत भारी हो रहा था, तो कभी बहुत हल्का हो रहा था, सब लोग कतारों में चल रहे थे, जैसे जैसे आगे चल रहे थे, जगह जगह कुछ न कुछ नया और अजीब सा डर का आभास हो रहा था, आखिर ये सब क्या हो रहा है, सब लोगों को आश्चर्य तो ये हो रहा था, कि अगर ये भगवान है, तो ये ऐसा क्यों कर रहा है हमारे साथ क्योंकि हम तो बहुत थके हुए है, इस भगवान को हमारा दुःख नही दिख रहा है, जो हमे बहुत सता रहा है, फिर क्या ऐसे बात करते करते ढाकरीयों को प्यास लगी तो किसी एक ने बोल ही दिया उससे रहा ही नही गया, उसने बोल ही दिया कि अगर तू भगवान है, तो हमे प्यास लगी हुई है, हमे पानी पीना है, यहां आसपास पानी नही है, क्या तुम पानी निकाल सकते हो तो क्या इतना बोलते ही जमीन से सीधे दूध निकल आया, उन्होंने कहा हमे दूध नही पानी चाहिए वही दूध फिर पानी बन गया, अब तो लग गया है जो हमारे साथ मे ऐसे चमत्कार कर रहा है वो कोई भगवान तो है, क्या किया जाए फिर भी वही हो रहा था कभी सामना हल्का कभी भारी हो रहा था, एक जगह सभी लोग बैठे और वहां पर ढक़रीयिओं के द्वारा घर से ले जा रखे सामव (खाना बनने के लिए राशन) से खाना बना रहे थे, जब प्रभु के द्वारा इधर के चावल का स्वाद लिया/भोग के रूप में तो प्रभु को लगा कि जिस क्षेत्र के चावल इतने स्वादिष्ट है तो वहां की भूमि भी पवित्र होगी उसके बाद प्रभु ढक़रीयिओं के साथ क्षेत्र में आने के लिए तैयार ही हो गए मानो, उस समय लोग ढाकर लेने के लिए चकराता और चुड़पुर (विकासनगर) जाते थे । जैसे तैसे सभी ढाकरी सकुशल घर आ गए, अब ये बात समस्त क्षेत्र में फैल गयी थी कि कोई देव है, जो अपना चमत्कार करते हुए हमारे साथ आये लेकिन जैसे ही प्रभु बजलाड़ी नामक गांव के पास पहुँचे वैसे ही सभी ढक़रीयिओं का सामान भारी हो गया, क्योंकि प्रभु वहां एक खेत जहाँ वर्तमान में एक मंदिर भी है, वहाँ पर खेत मे जमीन के नीचे चले गए, जो पहले से ही प्रभु की माया का परिणाम था । एक दिन गांव के एक किसान जिनका खेत है, अपने खेत मे हल जोत रहा था, तो हल का फाल अटक गया उसने उठाने का प्रयास किया लेकिन हल नही निकला, जब जोर का झटका दिया तो जो हुआ जिसका किसी को अंदाजा भी नही था, भगवान श्री रुद्रेश्वर महादेव की मूर्ति का प्राकट्य हो गया । जो मूर्ति उस समय प्रकट हुई थी वो आज भी बजलाड़ी मंदिर में है, जो यथावत रहती है बाकी पांच मूर्तियां डोली के अंदर ही रहती है, लेकिन वह मूर्ति जो खेत मे निकली वो आज भी बजलाड़ी मंदिर में ही है । जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे लोगों की श्रद्धा भक्ति भगवान में बढ़ने लगी, फिर ये कैसे सिद्ध होता कि ये देव जो खेत मे उपचे प्रभु कहाँ से आये क्या इतिहास रहा था, फिर उन्ही ढक़रीयिओं में से पमाड़ी गांव के एक व्यक्ति पर भगवान ने अपना अवतार या प्रेणा दी, जिसने झूलते हुए अपना इतिहास बताया और कहा कि मैं जम्मू से आया हूँ, और मैं वहां का राजा था, जो चोरों के द्वारा वहां से चोरी करके लाया जा रहा था तो जो प्रतिमा चोरों द्वारा लायी जा रही थी वो नदी में बहते-बहते दिल्ली आयी वहां से सामान के साथ ढाकारी लोगों के साथ आया हूँ ।
- समय बीतता गया, कई वर्षों तक प्रभु रुद्रेश्वर महाराज की पूजा बजलाड़ी के लोग लगाते थे/करते थे । जिस मंदिर में पूजा होती थी वो मंदिर नीचे दिया गया है फ़ोटो नीचे है ।
- नाम के बारे में मान्यता :- नाम की मान्यता प्रभु की ये है कि जब प्रभु की मूर्तियां बनी तो वो स्थान जहाँ मूर्तियाँ बनाई गई थी उसका नाम लुदरोगी है, जो देवदार के जंगलों के बीच मे वर्तमान देवराना मंदिर से 2 किमी0 दूर है, यहीं से प्रभु का नाम लुदेश्वर पड़ा था। क्योंकि ये नाम स्थान के आधार पर दिया गया है ।
- वैसे देखा जाए तो लुदेश्वर का तत्सम रूप रुद्रेश्वर है जिसका अपभ्रंश होने के बाद लुदेश्वर हो गया, उस समय हमारा समाज ज्यादा पढ़ा लिखा नही था, इसलिए ज्यादातर देशज शब्दों का प्रयोग ज्यादा किया जाता था, जिसका स्वरूप लुदेश्वर तक सीमित हो गया। अब लोग इसका शुद्ध वर्तनी रुद्रेश्वर का प्रयोग करते है, जो भगवान शिव का पर्यायवाची है ।
इष्टदेव रुद्रेश्वर महादेव की मूरत आप सभी दर्शन जरूर करें :-
- बाद के समय मे कई पंचायतें हुई और उस समय के समाज को प्रभु के बारे में और शक्तियों का पता चलने लगा अब आस पास के गांव भी प्रभु की मूरत देखने के लिए बजलाड़ी गांव में आने लगे, एक दिन की बात प्रभु ने किसी पर अपना अवतार/झूलना देकर अपने मेले आयोजन की बात की, फिर लोगों ने बजलाड़ी गांव के ऊपर कंडारा नामक जगह जो पमाड़ी और बजलाड़ी की कृषि भूमि है, वहां पर मेले का आयोजन किया जो साल में एक बार होता था, लोगों को भीड़ इतनी हो गयी कि जिसका कोई अंदाजा भी नही लगा सकता, ये भीड़ प्रभु की उस मूरत को देखने के लिए आई थी जो मूरत खेत मे उपची/निकली थी। देवराना मंदिर से पहले प्रभु की मूरत कंडारा में न्याय मुड़ियाँ से दिखाई जाती थी वो भी साल में एक बार ।। बाद-बाद में जब भीड़ बढ़ी और वहाँ उतनी जगह नही थी तो उसके बाद डांडा की जातिरा में प्रभु की मूरत की अंश मूरत दिखाई जाने लगी ।
- जिस समय भगवान श्री रुद्रेश्वर महादेव का प्राकट्य हुआ कहा जाता है, की उससे पहले इस क्षेत्र में बाबा बौखनाग का क्षेत्र था, समस्त क्षेत्र में बाबा बौखनाग की डोली घूमती थी परन्तु बाद बाद में भगवान रुद्रेश्वर महादेव ने इनके कुछ क्षेत्र में अपनी शक्तियों के आधार पर अपना लिया, आज के समय मे जो मंदिर तियाँ में है, वहाँ पहले बाबा बौखनाग रहते थे, लेकिन बाद बाद में भगवान रुद्रेश्वर महादेव वहां रहने लगे आज तियाँ मंदिर भगवान रुद्रेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है। जिसका चित्र नीचे दिया गया है ।
डांडा देवराना जातिरा :-
जब सारे मुलुक में भगवान रुद्रेश्वर महादेव की ख्याति बहुत चर्चा में थी, उससे पहले डांडा की जातर बाबा बौखनाग का मेला होता था, लेकिन उस समय शक्तियों के बल पर प्रभु ने उस मेले को अपना बना लिया, और बाबा बौखनाग का मेला अब ये बौख के डांडा जो कफनोल से 5 km दूर घने बांज बुरांश के जंगलों में होता है ।
- देवराना मंदिर भी सदियों पुराना जिसका इतिहास किसी के पास सुस्पष्ट नही है, केवल पौराणिक कथाओं में ही लोग इसकी चर्चा करते हैं, जो पुराना मंदिर है ये किसने बनाया कैसे बनाया इसका कुछ भी इतिहास किसी को भी नही पता खाली लोग ये कहते चुप हो जाते है कि मेरे समय मे ये मंदिर बना हुआ था, अब ये कब बना इसका पता तो भगवान को ही होगा लेकिन अगर बात करें वर्तमान मंदिर की तो इसका जीर्णोद्धार/आधुनिकरण वर्तमान समय कुछ दशक पहले किया गया है,जो अपनी अद्भुत दृश्य के लिए प्रसिद्ध है । नीचे छाया चित्र दिया गया है।
- अगर हम बात करें यहाँ के मेले की तो यह मेला अपने आप में बहुत भव्य और दिव्य है, जिसका हम अपने शब्दों में उल्लेख नही कर सकते इतना सुंदर मेले का आयोजन किया जाता है ।
- कहा जाता था पहले के जमाने मे जब शादी विवाह बहुत कम होते थे तो पहले के लोग गंधर्व विवाह करते थे(जिस विवाह में दोनों लड़का और लड़की की सहमति होती है) राक्षस विवाह भी प्रचलित था/भगा कर के लड़कियों से शादी करते थे और प्रेम विवाह का भी प्रचलन था तो जो भी सही लगे जिसको शादी करनी थी तो वो पहले से तय होता था कि मेले में मिलेंगे और वहीं से सीधे घर लाते थे बहु को ऐसी मान्यता थी ।
- सबसे बड़ी बात उस समय क्षेत्र में गरीबी बहुत थी लोग साल में एक बार पूरी और खाने के व्यंजन बनाते थे और उसे मेले में लेके जाते थे, साथ मे चूड़ा, बुकन ले जाते थे लोगों में उस समय एकता थी एक दूसरे से मिलते थे, नए नए कपड़े पहनते थे, पूरे साल भर अगर पुराने कपड़े पहनते थे, तो केवल मेले में नए कपड़े पहने जाते थे वो परम्परा आज भी है लोग मेले के लिए नए कपड़े बनाते है ।
- मेले में देखने योग्य एक खास बात ये है कि एक तरफ से अलग-अलग खत से आने वाला मौण है, तो एक तरफ साल में सभी के लिए न्याय मुंडिया से दिखाई जाने वाली भगवान श्री रुद्रेश्वर देवता की मूरत है।
मौण की तस्वीर:-
मौण का तरीका ये है, कि एक तरफ से मंजखत का मौण आता है तो दूसरी तरफ से डांडपर्या का मौण सब तरीके से लाठी डंडे लेकर प्रभु के गीतों को गाते आते है, सभी के चेहरों पर एक अलग सी मुस्कान और खुशी होती है ।
- इस दृश्य को पूरा मूलक देखता है । तथा सभी आनंदित हो जाते है ।
- समय के साथ साथ जब लोगों का घर जाने का समय होता है, लगभग 3 से 4 बजे के समय एक बार प्रभु की मूरत न्याय मुंडिया पर जाती, यहाँ पर से पुजारी जो तियाँ थान, कंडाव थान, देवलसारी थान से होते है, उनकी उपस्थिति में मूरत न्याय मुंडिया से समस्त जनता को दिखाई जाती है, दिखाते समय तियाँ थान से पुजारी दूध मूरत पर डालते है, ये दूध कंडाव/रस्टाड़ी से आता है।
न्याय मुंडिया का छायाचित्र :-
न्याय मुंडिया के दर्शन करते भक्तों का जमावड़ा :-
छायाचित्र:-
- मूरत दिखाने के बाद प्रभु को डोली कहाँ - कहाँ जाएगी इसका निर्धारण यहीं से होता है, मंदिर समिति के कुछ सदस्य जो नामित होते है, वो डोली की देखरेख एवम बनने वाली समस्त भेंट आदि का हिसाब अपने पास रखती है उसके बाद समस्त भेंट का हिसाब केंद्रीय कमेटी को दिया जाता है जिसका प्रयोग भविष्य निधि के रूप में मंदिर निर्माण, मरम्मत आदि कार्यों में लगाई जाती है ।
- देवराना मंदिर से जब रुद्रेश्वर भगवान डोली चलती है, तो एक साल मंजखत में तो एक साल डांडपर्या में घूमती है । गांव- गांव में देव डोली का स्वागत एवम पूजागाणी बनाई जाती है, लोग एक दूसरे घर खाने के लिए आमंत्रित किये जाते है, इसका कारण ये भी है कि लोग काम करके थक के जब घर लौटकर आते है तो प्रभु के दर्शन करने जाते है तो उस दिन जिसकी बारी पूजागाणी की होती है उसके घर मे ही भगवान का प्रसाद या भंडारा मानकर वहीं भोजन करके आते है जिससे आपसी मेलमिलाप बना रहे ।
- भगवान रुद्रेश्वर महराज पूरे डेढ़ महीने तक मुलक/क्षेत्र में घूमते है, उसके बाद गर्भगृह में प्रवेश करते है, और पुनः आषाढ़ महीने में गर्भगृह से बाहर आते है ।
★ आखिर क्या विशेषता है/चमत्कार है, भगवान रुद्रेश्वर महादेव के आओ जानते है :-
- वैसे तो सभी भगवानों की अपनी अलग अलग विशेषताएं होती है, लेकिन प्यारे प्रभु की विशेषताओं को जितना जानो कम ही है ।
- एक बार की बात है, भगवान की पूजा अर्चना के बाद हमेशा की तरह मंदिर के द्वार बंद हो जाते है, तभी कुछ चोर लुटेरे मंदिर में प्रवेश कर ताला तोड़कर सारी मूर्तियां अपने साथ ले कर जाते है, जैसे पुजारी सुबह स्नान करके मंदिर का द्वार खोलने जाते है, तो क्या देखा कि मूर्तियां गायब ये क्या हुआ, कैसे हुआ, ऐसा पुजारी जी चिल्लाये लोग इकट्ठा हुए, सब लोगों ने जांच शुरू कर दी, लेकिन कोई सुराग न मिला । समय बीतता गया, जनता परेशान आखिर किसने किया ये दुस्साहस जो भगवान की मूर्ति ले गया । जब कुछ समझ नही आया तो जो मुख्य पुजारी थे उनके मुख से स्वम् प्रभु ने बोला चिंता मत करो जिसने ये कार्य किया है, वो अपने आप सारी मूर्तियां स्वम् रख कर जाएगा, तो क्या; वही हुआ, जिसका सबको इन्तजार था, एक अच्छी खबर आई कि मूर्तियां का पता चल गया, देखा जाये तो ये कोई चोरी नही थी अपितु मेरे प्यारे प्रभु की एक माया थी, जिस माया या चमत्कार को प्रभु भक्तों के मन मे बिठाना चाहते है, क्योंकि उनकी चोरी कौन कर सकता है जिन्होंने सबके मन को पहले ही चुरा रखा हो ।
- दूसरी घटना क्या हुई एक बार सारी मालाएं भगवान की चोरी हुई, मेरा अनुमान है, कम से कम 40-50 तोले सोने की (इससे ज्यादा भी हो सकती है, क्योंकि वजन के आधार पर थोड़ा कम ज्यादा भी सो सकता है) माला फिर कोई चोरी करके ले गया लेकिन भगवान ने भी इसका फैसला स्वम् ही कर दिया आप मेरी मालाओं की चिंता न करें माला भी आएगी और चोर भी । फिर से सारी मालाएं वापस आ गयी । अब आप प्रभु की शक्ति का अंदाजा लगा सकते है ।
"मेरे प्रभु का एक ही सिद्धांत रहता है, कि चोर भी मेरा है, और बैरी भी मेरा है"
इस संसार मे कोई देवता ऐसा दृष्टांत नही देता लेकिन ये हमारे ही रुद्रेश्वर महादेव है जिनके ये विचार है । इस आधार पर आप इनके भोले स्वभाव को देख सकते है कि अपने चोर को भी ये जीवन दान दे देते है, इसलिए ये भोले ही नही अपितु कालों के काल महाकाल अथार्थ भगवान शंकर है।
- तीसरी सबसे बड़ी घटना जिसका आंखों देखा हाल हमने भी देखा है ।
- भगवान श्री रुद्रेश्वर महादेव प्रति वर्ष चार धाम यात्रा पर जाते है, ये घटना वर्ष 2013 की है जब उत्तराखंड में आपदा आयी थी, भगवान श्री रुद्रेश्वर महाराज भी सभी की तरह गाड़ियों में ले जाकर अपने असंख्य भक्तों के साथ एक धाम से दूसरे धाम ऐसे करते करते यात्रा करने लगे, अब बात ये है कि जब हर जगह सड़के खराब रास्ते बंद हो रखे थे, लेकिन जिस रास्ते से महाराज एवम महाराज के साथ जाने वाले भक्त जा रहे थे, उस दिशा में न कोई सड़क खराब न कोई नुकसान न कोई ज्यादा ओलावृष्टि, मौसम अच्छा, ऐसे करते करते महराज की जैसे ही यात्रा सम्पन हुई उसके एक या दो दिन के बाद पूरे उत्तराखंड में ऐसी आपदा आयी जैसी आपदा आज तक के इतिहास में न आई हो सब तहस नहस हो गया सारी सड़कें टूट गयीं, पुल टूट गए दुकाने बह गई केदारनाथ मंदिर परिसर क्षतिग्रस्त हो गया, होटल, गाड़ियां और हजारों लोग इस आपदा में अपनी जान गवां बैठे । उत्तराखंड कुछ समय के लिए वीरान, उजड़ा सा हो गया । लेकिन मेरे प्रभु श्री रुद्रेश्वर महादेव ने अपने भक्तों पर आंच न आने दी । अब आप लोग ही बताओ आखिर कैसे न इनके गुणों और शक्तियों का बखान करें जो अपने भक्तों का दुख कुछ क्षणों में ही हर लेते है ।
हमारे प्यारे प्रभु श्री रुद्रेश्वर महादेव की बहुत से विशेषताएं है। जिनका आभास आपको इनके चार थान में जाकर लगेगा ।
★ "वर्तमान समय मे श्री रुद्रेश्वर महादेव के मुख्य तीन बाकी हैं, जो अलग - अलग गाँव और थान के आधार पर प्रभु के मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवा दे रहें, जिनके माध्यम से प्रभु श्री रुद्रेश्वर महादेव अपने भक्तों का उद्धार एवम मार्गदर्शन साथ-साथ रक्षा का आश्वासन एवम आशीर्वाद प्रदान करते है।"
1. श्री संकित थपलियाल (माली जी)
संपर्क सूत्र :- +918449500107
2. श्री बालकराम नौटियाल जी (जो वर्तमान समय मे देवलसारी थान से पुराने माली है )
3. श्री अमित नौटियाल (माली जी)
संपर्क सूत्र :- +918171516417
4. श्री अमन सेमवाल (माली जी)
संपर्क सूत्र :- +919458325377
श्री रुद्रेश्वर महादेव के चार थान है जहां के छाया चित्र नीचे दिए गए है ।
1. देवलसारी (Devalsari)
भगवान श्री रुद्रेश्वर महादेव की आरती एवम स्तोत्र
इसका विमोचन सुमधुर भागवत कथा वक्ता श्री अमित डोभाल शास्त्री जी (धारी पल्ली) के द्वारा किया गया ।
स्तोत्र :-
वर्तमान समय मे देवराना मंदिर समिति
अध्यक्ष :- श्री जगमोहन परमार (ठाकुर) जी है ।
भगवान श्री रुद्रेश्वर महादेव के पुरोहित ग्राम सभा धारी पल्ली के ब्राह्मण है ।
प्रभु इष्टदेव श्री रुद्रेश्वर महादेव से संबंधित फ़ोटो :-
उपरोक्त पोस्ट को मेरे द्वारा अपने स्मरण से जो प्रभु के बारे में सुनी कहानियों एवम मेरे सामने वर्तमान स्थिति के आधार पर उल्लेखित है, यदि मेरे द्वारा किसी बात को लिखने में त्रुटि हो गयी हो तो भगवान श्री इष्टदेव और समस्त प्रभु के आराध्य भक्तों से माफी मांगते है, कृपा करके मेरा मार्गदर्शन करने की कृपा कीजिएगा ।
आप अपना सुझाव जरूर दें ।
आप से करबद्ध निवेदन है कि इस पोस्ट को कम से कम 3 या 5 लोगों को जरूर प्रेषित करें ताकि इष्टदेव श्री रुद्रेश्वर महादेव की महिमा एवम आशीर्वाद से कोई वंचित न रहे ।
धन्यवाद !
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