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बाबा बौख नाग रवाईं किंग उत्तरकाशी उत्तराखंड
संक्षिप्त इतिहास:-
28 नवम्बर 2023 का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसी दिन सीमान्त जनपद उत्तरकाशी में सिलक्यारा नामक स्थान पर एक सुरंग निर्माणाधीन है। इस टनल में 41 मजदूर एक माह तक फंसे रहे। दुनियां के वैज्ञानिको ने भी अपने हाथ पिछे खींच लिए थे। मगर स्थानीय देवता बौखनाग ने 25 नवम्बर 2023 को अपने पसुवा के माध्यम से कह दिया कि तीन दिन के अन्दर सभी मजदूर सकुशल बाहर आयेंगे और वही हुआ। दिल्ली से आये रैट माईनर ने तीन दिन के अन्दर सभी मजदूरों को सकुशल बाहर निकाल दिया। इसके बाद पूरी दुनियां में सिलक्यारा टनल अब तक चर्चाओं में है। यहां हम बौखनाग देवता पर बात करने जा रहे है। क्योंकि अभी हाल ही में 25 और 26 नवम्बर को बौखनाग देवता का मेला सम्पन्न हुआ है।
दरअसल बौखनाग देवता का मूल स्थान सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के कफनौल गांव में है। इसी देवता के मुख्य पुजारी भाटिया गांव के डिमरी लोग है। खास बात यह है कि बौखनाग देवता को राड़ी के उधर भण्डारस्यू, दशगी और इधर मुंगरसन्ती पट्टी के कफनौल, भाटिया और गैर गांव तथा बड़कोट पट्टी के समस्त गांव में देवता के मंदिर है। बौखनाग देवता के मुख्य थान यानि मुख्य स्थान जहां बौखनाग देवता सालभर के लिए प्रवास पर रहते है उनमें कफनौल, भाटिया, नदगांव, कंसेरू और उपराड़ी गांव में भी देवता क्रमवार एक एक साल के लिए प्रवास पर रहते है। देवता की मान्यता ऐसी है कि देवता के बिना स्थानीय ग्रामीण किसी भी सुख दुख के कार्यो को सम्पन्न नहीं कर सकते।
इस वर्ष भी अर्थात हर तिसरे वर्ष आयोजित होने वाला बौखनाग मेंले में लोगों को हुजुम उमड़ता है। यह मेला लगभग 2600 मी॰ की ऊंचाई पर स्थित बौखटिब्बे में आयेाजित होता है स्थानीय लोग अगले दिन इस मेले में आना आरम्भ करते हैं जो क्रमशः मोराल्टू, राड़ी टॉप, ज्वैला आदि स्थानो पर रात्री हेतु पंहुचते है। इस वर्ष की खास बात यह रही कि कफनौल के ग्रामीणों ने यानि युवक मंगलदल कफनौल के युवाओं ने मोरल्टू नामक स्थान पर रात्री जागरण की व्यवस्था की है। जहां अगले दिन पंहुचने वाले श्रद्धालुओं के लिए भण्डारे की उचित व्यवस्था की गई है। इसलिए बौखनाग मेंले में अगले दिन पंहुचने वाले मेलार्थी मोराल्टू नामक स्थान पर एकत्र हुए। इस अवसर पर लोक गायक सन्दीप कुमार, संगीत नाटक अकादमी बिस्मिल्ला खां पुरस्कार से सम्मानित रेशमा शाह, सुन्दर प्रेमी, रोशन माहिल, शूरवीर सिंह चौहान, किशन मंहत, राम कौशल, आशा अग्रवाल आदि ने रातभर लोगों सहित स्थानीय देवी देवताओं को खूब झुमाया है।
शास्त्रों के अनुसार महाभारत काल के समय कौरव पांडओ का युद्ध समाप्ति के बाद भगवान श्री कृष्ण ने शांति के लिए पहाड़ो कि तरफ रूख किया, भगवान सीधे अपने सारथी में सवार होकर बौख पर्वत उच्च स्थल पर पहुंचे। जहां अब बाबा बौख नागराजा का मंदिर बना है कुछ समय भगवान श्री कृष्ण ने बौख डांडा में बीताया जिसे बौख टिब्बा के नाम से अब जाना जाता है। कुछ लोग बासुकी नाग भी कहते है। महाभारत के एक खण्ड में बासुकी नमायः और धूप कुण्ड जैसे शब्द मिलते है। बौखटिब्बे के ठीक नीचे जहां एक बुग्याल है जिसे आज भी धोपकुण्ड नामक स्थान से जानते है। इसी स्थान पर मेलार्थी बौखनाग देवता की डोली को नचाते है और सभी श्रद्धालु देवता की डोली से आशीर्वाद लेते है।
तत्काल कृष्ण भगवान ने बौखटिब्बा पर अपनी बांसुरी बजाई और बांसुरी की धुन से एक नाग उत्पन्न हुआ। जिसे बासुकिया नाग से जाना गया है। मगर कालान्तर में यह शब्द अपभ्रंश हो गया और लोग बौखनाग कहने लगे। कई वर्षों बाद इस महिमा के फलस्वरूप बौख टिब्बा के निचले हिस्से एवं सुरूवती आबादी इलाके में भगवान बासुकी नाग की मूर्ति कफनोल गांव में प्रकट हुई, जहां तब एक विशाल भेकल झाड़ी का पेड़ रूप वृक्ष था। जिसकी लकड़ी से कफनौल गांव में मंदिर बनाया गया था। अब इस मंदिर का जीर्णाेद्वार हो चुका है। अर्थात बौख नाग देवता की मूल उत्पति कफनौल गांव में है। गांव के सिरहाने पर नासका नामी तोक में एक विशाल देवदार का पेड़ भी है इस विशालकाय देवदार पेड़ को भी बौख देवता का ही प्रतीक माना जाता है।
कफनौल गांव के पास एक बाड़का नामक स्थान हैं जहां के राजा ने कफनौल गांव के उस पेड नीचे खुदाई करवाई। खुदाई के समय औजार एक धातु पर लगा वैसे अंदर से आवाज आई देखते देखते मूर्ति दिखाई दी, जो मूर्ति चारो तरफ सांप के गोल घेरे से लिपटी हुई थी। राजा द्वारा पूजा अर्चना करने के बाद नाग देवता लुप्त हो गये। मूर्ति की कफनौल गांव में उसी स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा तत्काल उस राजा ने करवाई। आज भी कफनौल गांव में उस स्थान पर एक भव्य मंदिर है। इसी मंदिर के भीतर एक जल कुण्ड है जिसे रिंगदू पाणी कहते है। जो पानी कभी न तो घटता है और ना ही कभी बढता है।
उसी रात को स्वपन में राजा को बाबा बौख नाग ने विशाल रूप दिखाया। सारी घटना क्रम बताते हुये कहा कि उनकी पूजा अर्चना केदार धाम के पुजारी अर्थात रुद्रप्रयाग जिले के डिम्मर गांव के डिमरी होंगे के लिए राजा को चेताया। रंवाई घाटी के भाटिया गांव में बसे डिमरी पंडितो को भी इसी पूरे घटनाक्रम का मुख्य हिस्सा माना जाता है। पूजा का विधान तब से आज तक चल के आ रहा है। यह भी खास है कि बौखटिब्बा से आप सीधे गंगा और यमुना के दर्शन भी कर सकते हैं। बौखनाग देवता के मुख्य पुजारी डीमरी कहते हैं कि बौखटिब्बा, या डांडा पर बसा चौकी डुगू, धुपकुण्ड, रूपनौल सौड, चंदरोगी थात, चपूचौरी थातर, मोराल्टू थातर, बड थातर, नासका आदि देव स्थलो पर देव आछरियों यानि वन देवियों की पूजा होती है। यह बहुत ही सुंदर बुग्याल स्थल भी हैं।
हिन्दू पंचाग के अनुसार बाबा बौखनाग मेले को बौख पर्वत पर तिथि 11 गते मांगसीर को हर तिसरे वर्ष मनाया जाता है। बौखटिब्बा पर्वत के ठीक नीचे से लगभग पांच किलोमीटर की सुरंग अलवेदार प्रोजेक्ट के अनुरूप बनाई जा रही है। हालाकि यह सुरंग अभी पूरी नहीं हो पाई, पर नवम्बर 2023 में निर्माण के दौरान इसी सुरंग में जब 41 मजदूर फंस गये थे तो दुनियां के सभी वैज्ञानिकों ने हाथ खड़े कर दिये थे कि अब वे 41 मजदूरो को संभवतः बाहर कब निकाल पायेंगे जिसके लिए वे कुछ कह नहीं सकते। बौखनाग देवता के मुख्य पुजारी डिमरी ने इसके बाद कह दिया कि तीन दिन के अन्दर सभी मजदूर सकुशल बाहर आयेंगे। और वही हुआ। दिल्ली से बुलाय गये रैट माईनर के सहयोग से 28 नवम्बर को सभी 41 मजदूर सकुशल बाहर आ गये। प्रधानमंत्री मोदी और उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बौखनाग देवता के चरणों में शीश नवाकर खुशी जाहीर की है। यही वजह रही कि अब बौखनाग देवता का मेला राजकीय मेला हो गया है।
Writer-Prem Pancholi ji
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